Success Story of Ashok Kumar - मेहनत से पाया मुकाम : हम जीवन में कितना आगे बढ़ेंगे , यह हमारी सोच पर निर्भर करता है . स्टार्ट - अप स्लाइडशेयर के एक साधारण कर्मचारी अशोक कुमार ने इसे सच कर दिखाया है . अशोक ने एक हेल्पर के रूप में स्टार्ट - अप ज्वॉइन किया था और कुछ ही समय में वे इसके एक महत्वपूर्ण स्तंभ बन गये .
पैंतीस सौ रुपये थी शुरुआती पगार
दसवीं के बाद 18 वर्षीय अशोक जब काम की तलाश में दिल्ली आये , तो उन्हें आभास नहीं था कि उनकी किस्मत बदलने वाली है . हिसार , हरियाणा से दिल्ली आने के बाद अशोक अपने मामा के घर रहने लगे . इसे संयोग ही कहा जायेगा कि अशोक के मामा का घर स्लाइडशेयर के सह - संस्थापक और चीफ ऑपरेटिंग ऑफिसर अमित रंजन के आवास के निकट ही था .
अशोक और अमित का परिचय हुआ और अमित ने अशोक को स्टार्ट - अप में रखने का निर्णय लिया . अमित के कहने पर अशोक ने बतौर ऑफिस ब्वॉय ज्वॉइन कर लिया . उस समय उनका वेतन पैंतीस सौ रुपये था .
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दिल्ली में स्लाइडशेयर की शुरुआत 2006 में ही हुई थी और उसी वर्ष अशोक ने कंपनी को ज्वॉइन भी किया था . अशोक के बारे में अमित कहते हैं कि भले ही अशोक ने बतौर ऑफिस ब्वॉय कंपनी ज्वॉइन की थी , लेकिन अपने सीखने की आदत के कारण समय के साथ वह टीम का महत्वपूर्ण हिस्सा बन गये .
नौकरी के साथ पूरी की पढ़ाई
स्लाइडशेयर में काम करने के दौरान भी अशोक ने अपनी पढ़ाई जारी रखी और कॉमर्स में ग्रेजुएशन किया . इसके बाद उन्होंने एमबीए पूरा किया . अमित की मानें तो अशोक की बुद्धि बहुत तीव्र है . इसी कारण हेल्पर के तौर पर काम की शुरुआत करने के बावजूद अंतत : उन्होंने एडमिनिस्ट्रेशन से जुड़े सभी कार्यों का प्रभार संभाला.
इन कार्यों में अकाउंटिंग और एचआर भी शामिल था . इसी दौरान अशोक ने आईटी की पढ़ाई की और कंप्यूटर नेटवर्किंग भी सीखी.अशोक अमित को अपना मेंटर मानते हैं . वे कहते हैं कि अमित जी ने उन्हें काफी कुछ सिखाया है.वे उनके नायक हैं . उन्हीं के कारण वे ऑफिस ब्वॉय से कंपनी के महत्वपूर्ण सदस्य बन गये थे .
ऐसे बदला जीवन
वर्ष 2012 में जब लिंक्डइन ने 11.9 करोड़ डॉलर में स्लाइडशेयर का अधिग्रहण किया , तो अशोक के जीवन में महत्वपूर्ण बदलाव आया . अधिग्रहण के बाद अमित ने अशोक को एक पत्र सौंपा , जिसमें अशोक के इएसओपी ( एंप्लॉइज स्टॉक ऑनरशिप प्लान ) की विस्तृत जानकारी थी .
बाद में इस शेयर को बेचने के बाद अशोक को बारह लाख रुपये मिले . इस पैसे से दिल्ली में उन्होंने अपना फ्लैट खरीदा , जिसका सपना लेकर वे हिसार से दिल्ली आये थे . अशोक का कहना है कि उन्होंने कभी नहीं सोचा था कि स्लाइडशेयर इतना सफल होगा और उसमें काम करने के बदले कंपनी उन्हें इतना पैसा देगी.स्लाइडशेयर सैन फ्रांसिस्को की एक स्टार्ट - अप कंपनी थी.
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जब दिल्ली में इसकी शुरुआत हुई , तो कंपनी ने निर्णय लिया कि सभी कर्मचारियों को इसका शेयर दिया जायेगा . जब स्टार्ट - अप का अधिग्रहण हुआ , तो दिल्ली में इसके 55 व अमेरिका में 45 कर्मचारी थे और सभी के पास इसके शेयर थे . ऐसे में अधिग्रहण के बाद स्लाइडशयेर के स्टॉक लिंक्डइन के शेयर में बदल गये और अशोक समेत तमाम कर्मचारियों को फायदा हुआ .
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