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[IPS] Success Story of Safin Hasan - सबसे युवा आईपीएस अधिकारी

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[IPS] Success Story of Safin Hasan - सबसे युवा आईपीएस अधिकारी : गुजरात के कणोदरा गांव के निवासी 22 वर्षीय सफीन हसन देश के सबसे युवा आईपीएस अधिकारी बन गये हैं . उनकी ट्रेनिंग पूरी हो चुकी है और बतौर सहायक पुलिस अधीक्षक जामनगर में पहली पोस्टिंग मिली है . हालांकि यहां तक पहुंचना उनके लिए आसान नहीं था . उनकी राह में कई चुनौतियां आयीं , लेकिन बुलंद हौसलों के आगे धाराशायी हो गयी . नतीजा आज सबके सामने है . 


[IPS] Success Story of Safin Hasan - सबसे युवा आईपीएस अधिकारी



कई बार भूखे पेट गुजरी रात 



 सफीन के सवर माता - पिता नसीम बानू और मुस्तफा हसन डायमंड स्टो की एक यूनिट में काम करते थे . लेकिन , इससे परिवार की जरूरतें पूरी नहीं हो पाती थी और कई बार उन्हें भूखे पेट सोना पड़ता था . एक समय ऐसा भी आया जब उनके माता - पिता की नौकरी चली गयी . ऐसे में उनकी मां . ने घरों और रेस्त्रां में रोटी बनाने का काम शुरू किया . 



 पिता इलेक्ट्रीशियन का काम करने लगे . साथ ही जाड़े में अंडे और चाय का ठेला लगाने लगे , लेकिन उनकी आय से बमुश्किल परिवार की जरूरतें पूरी हो पाती थीं . सफीन कहते हैं कि उनकी मां सुबह तीन बजे से उठकर 20 से 200 किलो तक रोटी बनाती थीं.  इससे वे हर महीने पांच से आठ हजार रुपये कमाती थीं.घर में पैसों की काफी दिक्कत थी , लेकिन उनके माता - पिता ने उनकी पढ़ाई जारी रखी.रोटी बनाकर जो भी पैसे मां को मिलते थे वे सब सफीन की पढ़ाई के लिए रख दिये जाते थे . 


ऐसे मिली आगे बढ़ने की प्रेरणा 



 सफीन कहते हैं कि एक बार उनके गांव में कलेक्टर का री दौरा हुआ था . अपने बॉडीगार्ड के साथ चलते हुए कलेक्टर लोगों की समस्याएं सुन रहे थे और समस्याओं को हल करने का आश्वासन दे रहे थे . कलेक्टर द्वारा दिये गये इस आश्वासन ने छोटे से सफीन को काफी प्रभावित किया . 

 उन्होंने गांव के ही एक व्यक्ति से पूछा कि कलेक्टर कैसे बनते हैं और क्या कोई भी बन सकता है ? उस व्यक्ति ने बताया कि इसके लिए परीक्षा पास करनी होती है और उसके बाद कोई भी कलेक्टर बन सकता है . उसी दिन जैसे सफीन को उनके जीवन का मकसद मिल गया .


अपने मकसद को पाने के लिए वे पूरी मेहनत से पढ़ाई में जुट गये . सफीन ने वर्ष 2017 में यूपीएससी परीक्षा में 570 वीं रैंक हासिल की और आईपीएस बनने के लिए क्वॉलिफाई कर लिया . लेकिन उनका सपना आईएएस बनने का था , इसलिए अपनी रैंकिंग सुधारने के लिए उन्होंने दोबारा परीक्षा दी , पर उसे क्लियर नहीं कर सके . इसके बाद उन्होंने तय किया कि  वे आईपीएस के रूप में ही देश को अपनी सेवा देंगे . 


लोगों की मदद से पूरे हुए सपने 



 सफीन कहते हैं कि उनके सपनों को पूरा करने में उनके स्कूल प्रिंसिपल , पोलरा परिवार समेत कई लोगों का बड़ा योगदान है , जिन्होंने समय - समय पर उन्हें आर्थिक मदद मुहैया करायी . चूंकि सफीन एक मेधावी छात्र थे , इसलिए उनके स्कूल प्रिंसिपल भी चाहते थे कि वे अपनी पढ़ाई जारी रखें.सफीन जब हाई स्कूल में थे तो उन्होंने स्कूल फीस के 80,000 रुपये माफ कर दिये थे . 

 इतना ही नहीं , जब वे दिल्ली में कोचिंग करने के लिए आये तो उनके गांव के एक व्यवसायी हुसैन पोलरा और उनकी पत्नी रैना पोलरा ने अपने पास से उन्हें साढ़े तीन लाख रुपये की मदद की.ये पैसे सफीन के दिल्ली में दो वर्ष तक रहने , कोचिंग करने और आने - जाने के खर्च के तौर पर पोलरा परिवार द्वारा उठाये गये सफीन साफ शब्दों में कहते हैं कि अगर समाज ने साथ नहीं दिया होता , तो आज वे इस जगह नहीं पहुंचे होते . 


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लोगों ने सफीन की जो मदद की उससे उन्हें अन्य साधनविहीन बच्चों की मदद करने की प्रेरणा मिली . अपने खाली समय में वे अपने गांव के गरीब बच्चों को पढ़ाते हैं . उनका सपना एक अत्याधुनिक आवासीय स्कूल शुरू करने का है , जहां गरीब बच्चों के सपनों को पंख मिल सके .


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