गांव को संपन्न और लोगों को स्वस्थ बनाने की चाहत पूजा भारती को शहर से गांव खींच लायी . गेल जैसे प्रतिष्ठित संस्थान की नौकरी छोड़ आज वे ओडिशा के गांव में बैक टू - विलेज ' नाम से अपना स्टार्टअप चला रही हैं और किसानों को जैविक खेती के गुर सिखा रही हैं .
रास नहीं आई शहरी आबो - हवा
आईआईटी खड़गपुर से केमिकल इंजीनियरिंग करनेवाली पूजा भारती मूल रूप से बिहार के नालंदा जिले से हैं . उनकी शुरुआती पढ़ाई गांव में ही हुई . इंजीनियरिंग के दौरान उन्होंने अमेरिका की एक फर्म में इटर्नशिप की और फिर 2009 में पढ़ाई पूरी होने के बाद गेल मनोकरी करने लगी . यहां छह साल काम करने के बाद उन्होंने नौकरी छोड दी गांव में पली - बढ़ी पूजा को शहरी आबा - हवा रास नहीं आ रही थी .
वे हमेशा सोचती रहती थी कि शहर में न तो अच्छी हवा है , न खाने में स्वाद और न ही साफ पानी है. फिर इतने पैसे कमाने का क्या फायदा? क्यों लोग गांव छोड़कर शहर चले आते हैं?
अपनी नौकरी के सिलसिले में उन्होंने दिल्ली - मुंबई जैसे बड़े शहर भी देखे और रालेगन सिद्धि जैसे गांव भी . इस दौरान हमेशा उन्हें लगा कि अगर थोड़ी मेहनत की जाये , तो गांवों की जिंदगी बदली जा सकती है और सुकून से यहां रहा जा सकता है .
इस तरह हुई शुरुआत
गांव की जिंदगी बदलने की चाह पूजा के भीतर थी . इसी समय उनके बैचमेट और दोस्त मनीष कुमार ने उन्हें किसानों के लिए शुरू किये गये अपने स्टार्टअप के बारे में बताया . फार्स एंड फार्मर्स नामक इस स्टार्टअप के साथ मनीष काम कर रहे थे . मनीष पूजा को खेती - किसानी के बारे में जितना बताते , उनकी दिलचस्पी उतनी बढ़ती जाती . आखिरकार उन्होंने तय कर लिया कि उन्हें कृषि के क्षेत्र में काम करना है . साल 2015 में अपनी
नौकरी से इस्तीफा देने के बाद जैविक खेती को समझने के लिए वह असम के डिब्रूगढ़ गयीं . वहां उन्होंने जैविक खेती से जुड़ी चार महीने की ट्रेनिंग ली .
बैक टू विलेज के जरिये गांव को खुशहाल बनाने की कोशिश
लगभग एक साल के ग्राउंड वर्क के बाद पूजा ने मनीष के साथ मिलकर 2016 में ओड़िशा के मयूरभंज जिले के रायरमपुर गांव में बैक टू विलेज ' स्टार्टअप की शुरुआत की . इसके बाद इसी जिले के पांच गांवों के किसानों के साथ मिलकर जैविक खेती पर काम करना शुरू हुआ . इस स्टार्टअप के लिए उन्होंने अपनी बचत और पीएफ के सारे पैसे लगा दिये .
हालांकि , यहां कई तरह की चुनौतियां थीं . • किसानों को अन्य सफल खेती या जैविक किसानों के बारे में बताने से भी फायदा नहीं हो रहा था . उन्हें रासायनिक खेती छोड़ जैविक खेती करने के लिए मनाना बहुत ही मुश्किल था . अंततः उन्होंने गांव के ही थोड़े पढ़े - लिखे किसानों को इसके लिए तैयार किया और गांव में एक सेंटर बनाया .
इस सेंटर से किसानों को देसी बीज मुहैया करवाया जाता है . उन्हें जैविक खाद बनाना सिखाया जाता है और ट्रेनिंग व वर्कशॉप भी करायी जाती है . इन दिनों पूजा ने ओडिशा के तीन जिलों , मयूरभंज , बालेश्वर और पुरी में उन्नत कृषि केंद्र नाम से 10 जैविक फार्म सेंटर शुरू किये हैं . ये केंद्र स्थानीय कलेक्शन - सेंटर की तरह काम करेंगे , जहां किसान अपनी उपज लाकर बेच सकते हैं .
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